शहर की भीड़-भाड़ वाली सड़कों के किनारे, जहां गाड़ियों की चिल्ल-पौं और लोगों की आवाजाही कभी नहीं रुकती
, वहीं कहीं एक बूढ़ा भिखारी रामलाल और एक लावारिस कुत्ता भूरा अपनी जिंदगी बसर कर रहे थे।
दोनों की हालत ऐसी थी कि शायद ही कोई उन पर ध्यान देता।
हर कोई अपने कामों में इतना व्यस्त था कि उनके लिए यह केवल सड़क का एक कोना था,
लेकिन रामलाल और भूरे के लिए यह दुनिया थी।
इंसानियत
रामलाल की ज़िंदगी की जद्दोजहद
रामलाल कभी एक मजदूर हुआ करता था, लेकिन बढ़ती उम्र और कमजोर होती सेहत ने उसे लाचार बना दिया।
अब वह केवल एक कटोरा लेकर मंदिर के बाहर या सड़क किनारे बैठकर भीख मांगता था।
उसका दिन इस इंतजार में गुजरता कि कोई उस पर दया करे और दो रोटी का इंतजाम हो सके।
कभी-कभी लोग कुछ सिक्के फेंक देते, कभी कोई अधूरी रोटी हाथ लगती, और कभी पूरे दिन कुछ भी नहीं मिलता।
सर्दी की ठिठुरती रातें, गर्मी की जलती सड़कें और बारिश की बौछारें – हर मौसम का सितम उसने झेला था।
लेकिन सबसे बड़ी तकलीफ यह थी कि वह लोगों की नजरों में बस एक अवांछित व्यक्ति था,
जिसे देखकर लोग नजरें फेर लेते थे।

भूरे की तकलीफें
भूरा भी किसी जमाने में एक घर का पालतू कुत्ता था, लेकिन जब वह बूढ़ा हो गया और बीमार पड़ने लगा,
तो उसके मालिक ने उसे सड़क पर छोड़ दिया।
अब वह फुटपाथ पर इधर-उधर घूमता, कभी कचरे के ढेर से खाना तलाशता,
तो कभी किसी होटल के बाहर गिरे खाने के टुकड़ों के लिए अन्य कुत्तों से लड़ता। उसे न प्यार मिलता, न देखभाल।
भूरा कई बार बच्चों और राहगीरों की लात-घूंसे खा चुका था, कई बार उसे गाड़ियों ने टक्कर मारी,
लेकिन उसकी किस्मत में जीना लिखा था, इसलिए वह अब तक बचा हुआ था।

दो अनजानों की मुलाकात
एक दिन की बात है, जब रामलाल को पूरा दिन भीख में कुछ नहीं मिला। भूख से बेहाल, वह एक मंदिर के बाहर बैठा था।
अचानक, उसने देखा कि एक दुबला-पतला कुत्ता उसकी ओर देख रहा है।
उसकी आँखों में अजीब सा दर्द था, मानो वह रामलाल की तकलीफ को समझ रहा हो।
रामलाल के पास बस एक बासी रोटी थी, जिसे वह बचाकर रखना चाहता था,
लेकिन भूरे की हालत देखकर उसने आधी रोटी उसे दे दी। भूरा झट से खाने लगा और फिर रामलाल के पास बैठ गया।
वह दिन था और आज का दिन, दोनों ने एक-दूसरे का साथ कभी नहीं छोड़ा।

दोस्ती और संघर्ष की अनोखी कहानी
अब रामलाल जहां भी जाता, भूरा उसके पीछे-पीछे चलता। जब भी कोई राहगीर रामलाल को कुछ खाने के लिए देता,
वह उसमें से भूरे के लिए भी हिस्सा निकाल लेता। कई बार ऐसा भी हुआ कि लोग भूरे को पत्थर मारते या उसे भगाने की कोशिश करते,
लेकिन रामलाल उसे अपनी छड़ी से बचाता।
इसी तरह, जब कोई रामलाल को धिक्कारता या उसके कटोरे में सिक्के डालने की बजाय तंज कसता,
तो भूरा भौंककर उसकी रक्षा करता। दोनों एक-दूसरे के लिए परिवार बन चुके थे।

दुखद मोड़
एक दिन बहुत तेज बारिश हो रही थी। रामलाल और भूरा किसी पुल के नीचे दुबके हुए थे।
कई दिनों से उन्हें ढंग से खाना नहीं मिला था। बारिश के पानी में भीगने से रामलाल को तेज बुखार आ गया।
वह हिलने-डुलने की हालत में भी नहीं था।
भूरा इधर-उधर भागकर किसी को बुलाने की कोशिश करता, लेकिन कोई नहीं रुका।
आखिरकार, सुबह होते-होते रामलाल ने दम तोड़ दिया। भूरा उसकी लाश के पास बैठकर घंटों रोता रहा।
कुछ राहगीरों ने यह दृश्य देखा और नगर निगम को खबर दी। जब कर्मचारी रामलाल की लाश उठाने आए, तो भूरा उन्हें पास नहीं जाने दे रहा था।
लेकिन आखिरकार, उसे भी हटाया गया। रामलाल का शरीर तो चला गया, लेकिन भूरा वहीं बैठा रहा।
उसने न खाना खाया, न हिला-डुला। कुछ दिनों बाद, वह भी वहीं मर गया।

सबक और सच्चाई
रामलाल और भूरे की यह कहानी सिर्फ एक भिखारी और एक कुत्ते की नहीं है। यह समाज का वह चेहरा दिखाती है जिसे हम अनदेखा कर देते हैं।
हर दिन न जाने कितने रामलाल भूख और ठंड से दम तोड़ देते हैं, न जाने कितने भूरे सड़कों पर लात-घूंसे खाते हैं।
हम में से कई लोग मंदिरों और मस्जिदों में दान करते हैं, लेकिन एक भूखे इंसान या जानवर को देखकर नजरें फेर लेते हैं।
अगर हम थोड़ा-सा सहानुभूति रखें, थोड़ी-सी दया दिखाएँ, तो शायद ऐसी कितनी ही जिंदगियाँ बच सकती हैं।
रामलाल और भूरे की मौत भले ही कोई बड़ी खबर न बनी हो, लेकिन उनकी कहानी हमारे दिलों में एक सवाल छोड़ जाती है – क्या इंसानियत सच में मर चुकी है?
1. इस कहानी का मुख्य संदेश क्या है?
यह कहानी भारतीय भिखारियों और सड़क पर रहने वाले कुत्तों के संघर्ष को दिखाती है और उनकी दोस्ती व जीवन की कठिनाइयों को उजागर करती है।
2. भिखारी रामलाल सड़क पर क्यों रह रहा था?
रामलाल पहले एक मजदूर था, लेकिन बुढ़ापे और बीमारी के कारण वह काम करने में असमर्थ हो गया, जिसके कारण उसे भीख मांगनी पड़ी।